दुनिया में जब पहली बार, उसने उजाला देखा होगा, तो मां की कोख में बिताए 9 महीने के अंधेरे का एहसास उसे भी हुआ होगा। भले ही आंखें उस लाइट को एकदम बर्दाश्त नहीं कर पाने की वजह से रोई होंगी, लेकिन अपने वजूद को जिंदा देखकर, वो नन्हीं परी, खुश भी बहुत हुई होगी। एक प्यारी स्माइल के साथ अपनी मां को देखा होगा और शाबाशी दी होगी, जो उसे अबॉर्शन से बचाने में आखिरकार कामयाब हो गई थी। मगर अनजान थी वो बच्ची, इस बात से कि, यह सुनहरी दिखने वाली दुनिया, आग के जैसी भी हो सकती थी, उसे जिंदा जलाने वाली या फिर उसकी जिंदगी में अंधेरा लाने वाली, किसी डरावनी रात के जैसी भी। किसी तेजधार चाकू के जैसी, जो उसके जिस्म के टुकड़े कर सकती थी, या उस तेज़ाब के जैसी, जो उसके दिलो दिमाग को झुलस देगा। अपने उगते अस्तित्व में, दुनिया की चकाचौंध और अपने भविष्य का आईना देखने में इतनी busy थी कि मानो, बस जल्दी से उठकर उड़ना चाहती हो। आज, हर साल की तरह महिलाओं के खिलाफ Violence को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जा रहा है। हालांकि यह भी सच है कि सिर्फ एक दिन नहीं, हम, हमेशा महिला अधिकारों और उनकी सुरक्षा की बात करते हैं। 25 नवंबर की अहमियत को ध्यान में रखते हुए और साल 2030 तक महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को खत्म करने के लिए यूएन ने इस इंटरनेशनल डे का थीम UNITE रखा है। अगले 16 दिनों तक “Orange the World in 16 Days”, टैगलाइन के अंडर 10 दिसंबर तक, कई प्रोग्राम और अवेयरनेस सेशन करवाए जाएंगे। शायद आपको पता हो कि Orange, कलर आधी आबादी के उस Bright फ्यूचर को इंडिकेट करता है, जिसमें उनके साथ हिंसा नहीं होगी। इंडियन एनसीआरबी की रिपोर्ट की बात करें, तो साल 2020 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3 लाख मामले थे।
लेकिन आज भी हमारी सोसायटी में, लड़कियों को बोझ माना जाता है, हां खुशनसीब हैं वो बच्चियां, जिनके परिवारों ने उन्हें एक बेटे की तरह, खुली बाहों से अपनाया है। कभी सुनसान सड़कों या भीड़ से किडनैप हुई लड़कियां कुछ घंटे या कुछ दिन बाद, खून से लथपथ सड़कों पर मिलती हैं- जिंदा या अधमरी। कभी कचरे के ढेर पर नवजात, तो कभी जिस्म फरोशी में जबरदस्ती धकेली जाती हैं। कभी वर्क प्लेस पर harassment, तो कभी स्कूल में किसी Sexual violence को झेलती कोई कमजोर लड़की। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो महिलाओं को जिंदा जला कर शादी के बंधन से आजाद कर देते हैं और कभी उसके जिस्म के टुकड़ों को बटोरता पुलिस प्रशासन और समाज अक्सर यह सवाल पूछता है कि- कोई कैसे इतना निर्दयी सकता है। 2, 3 साल की या नाबालिग बच्चियों का रेप! क्या सच में इस दरिंदगी की कोई हद नहीं है? और कभी-कभी महिलाएं खुद भी, Domestic violence और Sexual violence के बाद, समाज में बदनामी के डर से, पुलिस के पास जाने की जगह, अपने आप को खत्म करना सही समझ लेती हैं। दूसरी महिलाओं पर अत्याचार करने वाले पुरुष कैसे अपनी मां, बहन या बेटी का सामना कर पाते हैं? क्या उन्हें इस बात का ख्याल नहीं आता कि उनके परिवार की महिलाओं के साथ भी तो कोई गलत कर सकता है।
लगभग हर परिवार में कोई न कोई महिला जरूर होती है। क्या एक मां, एक बहन और एक पत्नी अपने बेटे, भाई और पति को सही शिक्षा और संस्कार नहीं दे पा रही है? महिलाओं को दुर्गा, सरस्वती, काली और लक्ष्मी जैसी देवियां माना जाता है, जो ममता, प्यार और अपनेपन की मूरत हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर, बुराई का अंत करने के लिए उन्होंने रूद्र अवतार भी लिए हैं। अगर एक महिला, चाहे, तो वो समाज को बदल सकती है। भारतीय समाज और हर परिवार खुद ब खुद संस्कारों और सभ्यता से गहराई से जुड़ा है। एक महिला ही है, जो प्यार, संस्कार और नैतिक मूल्यों से अपने परिवार को जोड़कर रखती है और उन्हें सही रास्ते पर लाती है। लेकिन अगर ममता और करुणा से काम नहीं बन रहा है, तो महिलाओं को अपने परिवार के पुरुषों को सही रास्ते पर लाने के लिए साम, दाम, दंड और भेद की नीति अपनानी चाहिए। द रेवोल्यूशन -देशभक्त हिंदुस्तानी की ओर से, इस इंटरनेशनल डे पर मैं, सभी महिलाओं से कहना चाहूंगा कि अपने घर की लक्ष्मी और दुर्गा, तो आप ऑलरेडी हैं, लेकिन आज जरूरत है- काली बनने की। एक आप ही हैं, जो अपने परिवार को बदल कर, पूरे समाज और भारत को बदल सकती हैं।